क्यों होती है मुहुर्त में तारा बल की आवश्यकता और क्या इसका महत्व है
मुहुर्त एवं तारा बल
मुहूर्त नक्षत्र एवं तारा बल
ऋषियों ने अपने अनुसन्धान से पाया कि जन्म नक्षत्र के सापेक्ष प्रथम 9(नवक) नक्षत्र 9 प्रकार के फल देते हैं।ज्जन्म नक्षत्र से 10वें नक्षत्र से अगले नौ नक्षत्रों में तथा पुनः 19वें नक्षत्र से अगले नौ नक्षत्रो में क्रम से उन्हीं फलों की पुनरावृत्ति होती है।अतः फलानुसार इनके नाम रखे।इस प्रकार कुल 27 नक्षत्र 9 समूहों में बंट जाते हैं और प्रत्येक समूह में कुल 3 नक्षत्र शामिल होते हैं।।इन नक्षत्र समूहों को तारा कहते हैं।इनके नाम इस प्रकार है।
जन्म सम्पद् विपत् क्षेम प्रत्यरिः साधको वधः।
मैत्रं तथातिमैत्रं च तारा नामसदृक् फलाः ।।
अर्थात् (1)जन्म,(2)सम्पत,(3)विपत,(4)क्षेम,(5)प्रत्यरि,(6)साधक,(7)बध,(8)मित्र एवं (9)अतिमित्र ये नव तारायें हैं।ये नाम समान ही फल देती हैं।
जन्म नक्षत्र को जन्म तारा भी कहते हैं।जन्म नक्षत्र से 10वें एवं 19वें नक्षत्र जहाँ से क्रमशः द्वितीय एवं तृतिय आवृत्तियां आरम्भ होती हैं उन्हें क्रमशः अनुजन्म नक्षत्र या अनुजन्म तारा और त्रिजन्म नक्षत्र या त्रिजन्म तारा भी कहते हैं।
सुगमता से समझने के लिये प्रायः इन ताराओं को एक तालिका के रूप में दर्शाया जाता है।इस तालिका को 'नव तारा चक्र' या केवल 'तारा चक्र' में जानते हैं।उदारण हेतु यदि किसी का जन्म आर्द्रा नक्षत्र में हुआ है तो उसके लिये तारा चक्र नीचे दी गई तालिका जैसा होगा।किसी भी व्यक्ति के लिये तारा समूह याद रखना अत्यंत सरल है।
नाम के अनुरूप ही ये तारायें शुभ या अशुभ फल प्रदान करती हैं,ऐसा स्वीकारा जाता है।जन्म(शारीरिक सुख या दुख) तारा कुछ कृत्यों में शुभ तथा कुछ कृत्यों हेतु इसे अशुभ मानकर नहीं ग्रहण करते ।अतः यह मध्यम है।लेकिन प्रायः इसे सामान्य रूप से अशुभ तारा नहीं माना गया है।सम्पत्(धन संपत्ति),क्षेम(स्मृद्धि),साधक(कार्य सिद्धि, महत्वाकांक्षा की पूर्ति,सफलता,साधना,अनुसंधान आदि),मित्र(मित्र या सहयोगी) तथा अतिमित्र(अत्यन्त अनुकूल मित्र या सहयोगी) सभी कृत्यों हेतु शुभ तारायें हैं।विपत(विपत्ति, हानि,खतरा,दुर्घटना आदि ), प्रत्यरि (शत्रुता, अड़चननें, बाधा आदि) तथा वध(मृत्यु,शारीरिक एवं मानसिक कष्ट,घोर असफलता आदि) सभी कृत्यों के लिये अशुभ तारायें हैं।
मुहूर्त हेतु अभिष्ट दिन शुभ या अशुभ तारा जानने का आसान तरीका निम्न श्लोक में दिया है।
दिनर्क्षसंख्या जन्मनर्क्षान्न वहृच्छेष-सम्मिताः।
तारारित्र-पञ्च-सप्तम्यो नेष्टाश्चान्यास्तु शोभनाः।।
अर्थात् जन्म नक्षत्र से इष्ट दिन तक जो संख्या हो,उसमें 9 का भाग देने से जो संख्या शेष हो उसके समान तारा होती है।उनमें3,5,7वीं तारा अशुभ तथा अन्य शुभ होती हैं।
पुष्य नक्षत्र में सभी तारायें ग्राह्य हैं। यथा-
जन्मख्यां मध्यमं प्रोक्तं नेष्टं पञ्च-त्रि-सप्तमम् ।
अन्यर्क्षं शुभदं। ज्ञेयं पुष्यः सर्वत्र शोभनः।।
अर्थात् जन्म तारा मध्यम,3,5,7वीं अशुभ और 2,4,6,8,9वीं शुभ होती हैं।किंतु पुष्य नक्षत्र नेष्ट तारा होने पर भी ,समस्त कार्यों में शुभ होता है।
मुहूर्त चिंतामणि के अनुसार-
तारा बल
मुहूर्त के समय जो नक्षत्र कार्यरत हो यदि वह जन्म नक्षत्र के सापेक्ष शुभ तारा (सम्पत्,क्षेम,साधक,मित्र या अति मित्र व कुछ मामलों में जन्म तारा) का हो तो मुहूर्त को बल प्राप्त होता है।इसी को मुहूर्त का तारा बल कहते हैं।इसके विपरीत यदि यदि मुहूर्त नक्षत्र विपत,प्रत्यरि एवं वध तारा के हों तो मुहूर्त नक्षत्र बल हीन होता है और ऐसे मुहूर्त में आरम्भ किये गये कार्य की सफलता संदिग्ध होती है।
किन्तु एक अन्य मत के अनुसार तारा का महत्व चंद्रमा से अधिक है।मान लीजिये मृगशिरा नक्षत्र किसी का जन्म नक्षत्र है।मृगशिरा मंगल शासित नक्षत्र है।इसलिये मंगल शासित अन्य दो नक्षत्र चित्र एवं धनिष्ठा भी जन्म नक्षत्र होते हैं।इसी प्रकार से यदि यदि साधक तारा रोहिणी हो ,तो चंद्रमा शासित दो अन्य नक्षत्र हस्त और श्रवण भी साधक तारा के अंतर्गत होंगे।
कुजादिभ्यो बली सूर्यो बली सूर्याच्च चन्द्रमाः।
चंद्राद् बलवती तारा तस्मात् तारा गरीयसी।।
अर्थात् मंगल आदि ग्रहों से सूर्य बली, सूर्य से चंद्रमा बली और चंद्रमा से भी तारा बली होती है।इस कारण तारा की गरिमा है।
लेखक :- नरेश चंद्र
मो: 9695986437
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