नाड़ी दोष का सही तथ्य
नदी दोष: सही तथ्य
भावी दम्पति के स्वभाव एक दूसरे के कितने अनुकूल या समान होंगे, यह जानने के लिये अष्टकूट मेलापक का सहारा लिया जाता है।
कूट का अर्थ समूह या बिखरे सामानों को मिलाकर एक स्थान पर रखना भी होता है।अष्ट का अर्थ आठ होता है। चूंकि यह मेलापक आठ घटकों पर आधारित है,अतः इसे अष्टकूट कहते हैं।
पति पत्नी के स्वभाव समान होने पर परस्पर प्रीति या आपस में मेल रहता है।शास्त्रकार कहते हैं-
सेव्य सेवकयो रेवं दम्पत्योर्वा कयोरपि।
द्वयोर्यत्र मिथः प्रितिस्तत्रैव सुखसम्पदः।।
अर्थात जहां मालिक और नौकर में, पति और पत्नी में,अथवा किन्हीं भी दो सम्मिलित व्यवहार व्यवहार करने वाले व्यक्तियों में परस्पर प्रेम रहता है, वहीं सब प्रकार की सुख समृद्धि रहती है।
प्रेम स्वभाव की समानता पर निर्भर है।स्वभाव मुख्य रूप से मन और मनुष्य के गुणों पर निर्भर है।अतः इस मेलापक का मुख्य आधार जन्म चंद्रमा की राशि एवं नक्षत्र हैं।जिस घटक में अनुकलता न हो तो उससे जुड़े परिहार(cancellation or alternative solution) को देखा जाता है।परिहार उप्लब्ध होने पर उसे स्वीकार कर लिया जाता है।
अष्टकूल मेलापक में दो घटक योनि एवं नाड़ी शारीरिक अनुकूलता(physical compatibilty) से भी सम्बन्ध रखते हैं।यहां मैं सिर्फ नाड़ी की चर्चा कर रहा हूँ।
अष्टकूट मेलापक में परंपरा में प्रचलित निम्न वचन को प्रायः ध्यान में रखा जाता है या रखना चाहिये।
नाड़ी दोषो हि विप्राणां वर्णदोषस्तु भूभुजाम्।
वैश्यानां गण दोषस्तु शुद्राणां योनि दूषणम्।।
अर्थात ब्राह्मणों में नाड़ी दोष, क्षत्रियों में वर्ण दोष,वैश्यों में गण दोष तथा शूद्रों में योनि दोष देखना चाहिये।
यहां जो वर्णों का संदर्भ लिया गया है वह राशियों से है,जबकि कई पंडित प्रचलन प्रयुक्त जातियों से इन्हें जोड़ते हैं जो वस्तुतः गलत है।नाड़ी रक्त संचार या शरीर के संकेतों के प्रवाह का माध्यम है।दरअसल नाड़ी खून के प्रवाह को नियंत्रित करती है।चूंकि रक्त जल तत्व से संबंधित है और ब्राह्मण राशियां भी जल तत्व की राशियां हैं, अतः नाड़ी का ब्राह्मण राशियों से संबंध होना तर्कयुक्त है।इसी कारण प्रथम कूट वर्ण रखा गया है।सभी 12 राशियों के वर्ण उनके तत्व गुण के साथ नीचे दिये जा रहे है।
1) मेष, सिंह , धनु - क्षत्रिय(अग्नि तत्व)
2) वृष,कन्या, मकर- वैश्य(पृथिवी तत्व)
3) मिथुन, तुला, कुम्भ- शुद्र(वायु तत्व)
4) कर्क, वृश्चिक,मीन- ब्राह्मण(जल तत्व)
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लेखक:नरेश चंद्र